History Of Tea
एक प्याली गरम चाय – जीवन आनंद
ध्यान लगाए बैठे बोधिधर्म को कब नींद ने अपने आग़ोश में ले लिया पता ही नहीं चला । नींद टूटी तो बेहद ग़ुस्से में उन्होंने अपनी पलकें काट कर फेंक दी । बहुत सिद्ध पुरुष थे बोधिधर्म , भारत के दक्षिण राज्य के एक पल्लव कुमार । लेकिन राजसी ठाठ बाठ छोड़ चीन पहुँच गए बौद्ध धर्म का विस्तार करने । उन्होंने पलकें काट कर जहाँ फेंकी , वहाँ हरी पत्तियों वाले पौधे उग आए । इन पत्तियों को पानी में उबाल कर पिया जाए तो नींद ग़ायब हो जाती थी । बोधि धर्म जिस पहाड़ पर ध्यानमग्न थे उसका नाम था ताई । इस वजह से पौधे को मिला नाम टी यानी चाय ।
कल्पनाओं में लिपटी इस कहानी में दो बातें बिलकुल असली हैं – बोधिधर्म और चाय का चमत्कार । उसमें भी बात अगर सुबह की चाय की हो , तो फिर क्या ही कहना । कोई तलबगार ही बता सकता है सुबह उठने के बाद जो बेचैनी मचती है चाय का कप थामने के लिए , वैसी किसी और चीज़ के लिए कहाँ । पहली चुस्की जब मुँह से गले के रास्ते नीचे उतरती है , तो पहले पहल आँखें मूँद जाती हैं आनंद से । फिर अचानक जैसे ऊर्जा का विस्फोट सा होता है । उस चुस्की की एक एक बूँद मानों नसों में दौड़ने लगता है । चेतना लौट आती है , आलस भाग जाता है , शरीर हरकत में आ जाती है । इसके लिए शुक्रिया कहिए इसमें पाए जाने वाले कैफ़ीन का , जो दिमाग़ और नर्वस सिस्टम को उत्तेजित कर देती है । इसमें प्लांट कंपाउंड पॉलीफ़ेनोल्स भी मिलता है , जिसमें एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं ।
चाय ख़ुद में एक लोक कथा है । अपना इतिहास है इसका और राजनीति भी । मुख्य रूप से ईस्ट एशिया की पैदावार मानी जाने वाली चाय चीन में तीसरी सदी और कई रिपोर्ट के मुताबिक़ , उससे भी पहले से पी जा रही है । 16वीं सदी में पुर्तगाली पुजारियों और चीन के व्यापारियों के ज़रिए यह पश्चिम में पहुँची । भारत में बड़े पैमाने पर इसके उत्पादन का श्रेय देना चाहिए अंग्रेजों को , जिन्होंने चाय के बड़े बड़े बाग़ान लगवाए । चाय की प्याली संग कई बड़े मसले सुलझे , तो इसी की वजह से अमेरिकी क्रांति के इतिहास में बोस्टन टी पार्टी जैसी घटना हुई । जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के चाइनीज़ चाय को अमेरिका में बेचने के ख़िलाफ़ क्रांतिकारी खड़े हो गए थे ।
चाय ने बग़ावत कराई , तो ये प्रेम का माध्यम भी है । सन 1962 में किंग चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी से शादी की , तो तोहफ़े में संदूक चाय भी ली । ओशो का कहना था , चाय केवल एक पेय नहीं है । यह एक मैडिटेशन है । एक प्रार्थना है । सुबह की शांति में ध्यान से सुनिए आंच पर चढ़ी चाय को खौलते हुए । ध्यान से देखिए उसका रंग पानी में उतरते । चीनी कहावत है , एक सच्चा योद्धा चाय की तरह अपनी ताक़त गर्म पानी में दिखाता है ।
सुबह की चाय संदेश है , ख़ुद घुलकर , अपना रंग छोड़ कर दूसरों का दिन कैसे बेहतर बना सकते हैं । संदेश है कि अगर निखरना है , किसी का काम बनना है , तो चुनौतियों की तपीस में पकना होगा । इस उबलने के पहले का सफ़र भी इतना आसान नहीं । लेकिन , जिसने इन मुश्किलों को पार पा लिया , वह फिर निखर जाएगा । दूसरों का दिन बनाने की क़ाबिलियत आ जाएगी उसमें ।
चाय में हुनर है अधूरी सुबह को पूरी करने का , किसी भी आकार में ढल जाने का , और किसी के साथ भी मेल बढ़ाने का । कप कुल्हड़ या फिर हो गिलास इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता । चाय अपने आप में पूर्ण है , संतुष्ट है । यह केवल चाय के बस का था कि इसने हर गली – नुक्कड़ , चौक – चौराहे पर अपनी जगह बना ली ।
सुबह की चाय सिखाती है इंतज़ार करना , सब्र करना और ज़रूरत पड़े तो साझा करना । यह केवल पीने की चीज नहीं । महसूस कीजिए इसे । देखिए , कैसे एक एक पत्ती गर्म पानी में घूमते हुए उसे नया स्वाद , नया कलेवर देती जाती है । देखिए गर्म उठती हुई भाप को । अदरक का कूटना , दूध का मिलना , चाय का खौलना , इसे भी देखिए । लेकिन , कोई जल्दीबाज़ी नहीं , जब दोनों हाथ की गदेलियों के बीच गर्म गर्म गिलास आ जाए , तब भी नहीं । वरना गर्म चाय मुँह जला देती है ।


